وَالضُّحَىٰ (1)

(ऐ रसूल) पहर दिन चढ़े की क़सम

وَاللَّيْلِ إِذَا سَجَىٰ (2)

और रात की जब (चीज़ों को) छुपा ले

مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلَىٰ (3)

कि तुम्हारा परवरदिगार न तुमको छोड़ बैठा और (न तुमसे) नाराज़ हुआ

وَلَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَكَ مِنَ الْأُولَىٰ (4)

और तुम्हारे वास्ते आख़ेरत दुनिया से यक़ीनी कहीं बेहतर है

وَلَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ فَتَرْضَىٰ (5)

और तुम्हारा परवरदिगार अनक़रीब इस क़दर अता करेगा कि तुम ख़ुश हो जाओ

أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَىٰ (6)

क्या उसने तुम्हें यतीम पाकर (अबू तालिब की) पनाह न दी (ज़रूर दी)

وَوَجَدَكَ ضَالًّا فَهَدَىٰ (7)

और तुमको एहकाम से नावाकिफ़ देखा तो मंज़िले मक़सूद तक पहुँचा दिया

وَوَجَدَكَ عَائِلًا فَأَغْنَىٰ (8)

और तुमको तंगदस्त देखकर ग़नी कर दिया

فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلَا تَقْهَرْ (9)

तो तुम भी यतीम पर सितम न करना

وَأَمَّا السَّائِلَ فَلَا تَنْهَرْ (10)

माँगने वाले को झिड़की न देना

وَأَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ (11)

और अपने परवरदिगार की नेअमतों का ज़िक्र करते रहना