الْقَارِعَةُ (1)

वह खड़खड़ानेवाली!

مَا الْقَارِعَةُ (2)

क्या है वह खड़खड़ानेवाली?

وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْقَارِعَةُ (3)

और तुम्हें क्या मालूम कि क्या है वह खड़खड़ानेवाली?

يَوْمَ يَكُونُ النَّاسُ كَالْفَرَاشِ الْمَبْثُوثِ (4)

जिस दिन लोग बिखरे हुए पतंगों के सदृश हो जाएँगें,

وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ الْمَنْفُوشِ (5)

और पहाड़ के धुन के हुए रंग-बिरंग के ऊन जैसे हो जाएँगे

فَأَمَّا مَنْ ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ (6)

फिर जिस किसी के वज़न भारी होंगे,

فَهُوَ فِي عِيشَةٍ رَاضِيَةٍ (7)

वह मनभाते जीवन में रहेगा

وَأَمَّا مَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ (8)

और रहा वह व्यक्ति जिसके वज़न हलके होंगे,

فَأُمُّهُ هَاوِيَةٌ (9)

उसकी माँ होगी गहरा खड्ड

وَمَا أَدْرَاكَ مَا هِيَهْ (10)

और तुम्हें क्या मालूम कि वह क्या है?

نَارٌ حَامِيَةٌ (11)

आग है दहकती हुई