أَلَمْ نَشْرَحْ لَكَ صَدْرَكَ (1)

क्या ऐसा नहीं कि हमने तुम्हारा सीना तुम्हारे लिए खोल दिया?

وَوَضَعْنَا عَنْكَ وِزْرَكَ (2)

और तुमपर से तुम्हारा बोझ उतार दिया,

الَّذِي أَنْقَضَ ظَهْرَكَ (3)

जो तुम्हारी कमर तोड़े डाल रहा था?

وَرَفَعْنَا لَكَ ذِكْرَكَ (4)

और तुम्हारे लिए तुम्हारे ज़िक्र को ऊँचा कर दिया?

فَإِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا (5)

अतः निस्संदेह कठिनाई के साथ आसानी भी है

إِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا (6)

निस्संदेह कठिनाई के साथ आसानी भी है

فَإِذَا فَرَغْتَ فَانْصَبْ (7)

अतः जब निवृत हो तो परिश्रम में लग जाओ,

وَإِلَىٰ رَبِّكَ فَارْغَبْ (8)

और अपने रब से लौ लगाओ