قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ (1)

सफल हो गए ईमानवाले,

الَّذِينَ هُمْ فِي صَلَاتِهِمْ خَاشِعُونَ (2)

जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता अपनाते है;

وَالَّذِينَ هُمْ عَنِ اللَّغْوِ مُعْرِضُونَ (3)

और जो व्यर्थ बातों से पहलू बचाते है;

وَالَّذِينَ هُمْ لِلزَّكَاةِ فَاعِلُونَ (4)

और जो ज़कात अदा करते है;

وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ (5)

और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है-

إِلَّا عَلَىٰ أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ (6)

सिवाय इस सूरत के कि अपनी पत्नि यों या लौंडियों के पास जाएँ कि इसपर वे निन्दनीय नहीं है

فَمَنِ ابْتَغَىٰ وَرَاءَ ذَٰلِكَ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْعَادُونَ (7)

परन्तु जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा उल्लंघन करनेवाले है।-

وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ (8)

और जो अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते है;

وَالَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَوَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ (9)

और जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं;

أُولَٰئِكَ هُمُ الْوَارِثُونَ (10)

वही वारिस होने वाले है

الَّذِينَ يَرِثُونَ الْفِرْدَوْسَ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ (11)

जो फ़िरदौस की विरासत पाएँगे। वे उसमें सदैव रहेंगे

وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ مِنْ سُلَالَةٍ مِنْ طِينٍ (12)

हमने मनुष्य को मिट्टी के सत से बनाया

ثُمَّ جَعَلْنَاهُ نُطْفَةً فِي قَرَارٍ مَكِينٍ (13)

फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बूँद बनाकर रखा

ثُمَّ خَلَقْنَا النُّطْفَةَ عَلَقَةً فَخَلَقْنَا الْعَلَقَةَ مُضْغَةً فَخَلَقْنَا الْمُضْغَةَ عِظَامًا فَكَسَوْنَا الْعِظَامَ لَحْمًا ثُمَّ أَنْشَأْنَاهُ خَلْقًا آخَرَ ۚ فَتَبَارَكَ اللَّهُ أَحْسَنُ الْخَالِقِينَ (14)

फिर हमने उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया; फिर हमने उस लोथड़े को बोटी का रूप दिया; फिर हमने उन हड्डियों पर मांस चढाया; फिर हमने उसे एक दूसरा ही सर्जन रूप देकर खड़ा किया। अतः बहुत ही बरकतवाला है अल्लाह, सबसे उत्तम स्रष्टा!

ثُمَّ إِنَّكُمْ بَعْدَ ذَٰلِكَ لَمَيِّتُونَ (15)

फिर तुम अवश्य मरनेवाले हो

ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ تُبْعَثُونَ (16)

फिर क़ियामत के दिन तुम निश्चय ही उठाए जाओगे

وَلَقَدْ خَلَقْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعَ طَرَائِقَ وَمَا كُنَّا عَنِ الْخَلْقِ غَافِلِينَ (17)

और हमने तुम्हारे ऊपर सात रास्ते बनाए है। और हम सृष्टि-कार्य से ग़ाफ़िल नहीं

وَأَنْزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً بِقَدَرٍ فَأَسْكَنَّاهُ فِي الْأَرْضِ ۖ وَإِنَّا عَلَىٰ ذَهَابٍ بِهِ لَقَادِرُونَ (18)

और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है

فَأَنْشَأْنَا لَكُمْ بِهِ جَنَّاتٍ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ لَكُمْ فِيهَا فَوَاكِهُ كَثِيرَةٌ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ (19)

फिर हमने उसके द्वारा तुम्हारे लिए खजूरो और अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फल है (जिनमें तुम्हारे लिए कितने ही लाभ है) और उनमें से तुम खाते हो

وَشَجَرَةً تَخْرُجُ مِنْ طُورِ سَيْنَاءَ تَنْبُتُ بِالدُّهْنِ وَصِبْغٍ لِلْآكِلِينَ (20)

और वह वृक्ष भी जो सैना पर्वत से निकलता है, जो तेल और खानेवालों के लिए सालन लिए हुए उगता है

وَإِنَّ لَكُمْ فِي الْأَنْعَامِ لَعِبْرَةً ۖ نُسْقِيكُمْ مِمَّا فِي بُطُونِهَا وَلَكُمْ فِيهَا مَنَافِعُ كَثِيرَةٌ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ (21)

और निश्चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते है। औऱ तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे है और उन्हें तुम खाते भी हो

وَعَلَيْهَا وَعَلَى الْفُلْكِ تُحْمَلُونَ (22)

और उनपर और नौकाओं पर तुम सवार होते हो

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوْمِهِ فَقَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُمْ مِنْ إِلَٰهٍ غَيْرُهُ ۖ أَفَلَا تَتَّقُونَ (23)

हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा तो उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा और कोई इष्ट-पूज्य नहीं है तो क्या तुम डर नहीं रखते?"

فَقَالَ الْمَلَأُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ قَوْمِهِ مَا هَٰذَا إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ يُرِيدُ أَنْ يَتَفَضَّلَ عَلَيْكُمْ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَأَنْزَلَ مَلَائِكَةً مَا سَمِعْنَا بِهَٰذَا فِي آبَائِنَا الْأَوَّلِينَ (24)

इसपर उनकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। चाहता है कि तुमपर श्रेष्ठता प्राप्त करे।""अल्लाह यदि चाहता तो फ़रिश्ते उतार देता। यह बात तो हमने अपने अगले बाप-दादा के समयों से सुनी ही नहीं

إِنْ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ بِهِ جِنَّةٌ فَتَرَبَّصُوا بِهِ حَتَّىٰ حِينٍ (25)

यह तो बस एक उन्मादग्रस्त व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो।"

قَالَ رَبِّ انْصُرْنِي بِمَا كَذَّبُونِ (26)

उसने कहा, "ऐ मेरे रब! इन्होंने मुझे जो झुठलाया है, इसपर तू मेरी सहायता कर।"

فَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِ أَنِ اصْنَعِ الْفُلْكَ بِأَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا فَإِذَا جَاءَ أَمْرُنَا وَفَارَ التَّنُّورُ ۙ فَاسْلُكْ فِيهَا مِنْ كُلٍّ زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ وَأَهْلَكَ إِلَّا مَنْ سَبَقَ عَلَيْهِ الْقَوْلُ مِنْهُمْ ۖ وَلَا تُخَاطِبْنِي فِي الَّذِينَ ظَلَمُوا ۖ إِنَّهُمْ مُغْرَقُونَ (27)

तब हमने उसकी ओर प्रकाशना की कि "हमारी आँखों के सामने और हमारी प्रकाशना के अनुसार नौका बना और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तूफ़ान उमड़ पड़े तो प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख ले और अपने लोगों को भी, सिवाय उनके जिनके विरुद्ध पहले फ़ैसला हो चुका है। और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करना। वे तो डूबकर रहेंगे

فَإِذَا اسْتَوَيْتَ أَنْتَ وَمَنْ مَعَكَ عَلَى الْفُلْكِ فَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي نَجَّانَا مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ (28)

फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी तो कह, प्रशंसा है अल्लाह की, जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया

وَقُلْ رَبِّ أَنْزِلْنِي مُنْزَلًا مُبَارَكًا وَأَنْتَ خَيْرُ الْمُنْزِلِينَ (29)

और कह, ऐ मेरे रब! मुझे बरकतवाली जगह उतार। और तू सबसे अच्छा मेज़बान है।"

إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ وَإِنْ كُنَّا لَمُبْتَلِينَ (30)

निस्संदेह इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं और परीक्षा तो हम करते ही है

ثُمَّ أَنْشَأْنَا مِنْ بَعْدِهِمْ قَرْنًا آخَرِينَ (31)

फिर उनके पश्चात हमने एक दूसरी नस्ल को उठाया;

فَأَرْسَلْنَا فِيهِمْ رَسُولًا مِنْهُمْ أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُمْ مِنْ إِلَٰهٍ غَيْرُهُ ۖ أَفَلَا تَتَّقُونَ (32)

और उनमें हमने स्वयं उन्हीं में से एक रसूल भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। तो क्या तुम डर नहीं रखते?"

وَقَالَ الْمَلَأُ مِنْ قَوْمِهِ الَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِلِقَاءِ الْآخِرَةِ وَأَتْرَفْنَاهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا مَا هَٰذَا إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ يَأْكُلُ مِمَّا تَأْكُلُونَ مِنْهُ وَيَشْرَبُ مِمَّا تَشْرَبُونَ (33)

उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया और आख़िरत के मिलन को झूठलाया और जिन्हें हमने सांसारिक जीवन में सुख प्रदान किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। जो कुछ तुम खाते हो, वही यह भी खाता है और जो कुछ तुम पीते हो, वही यह भी पीता है

وَلَئِنْ أَطَعْتُمْ بَشَرًا مِثْلَكُمْ إِنَّكُمْ إِذًا لَخَاسِرُونَ (34)

यदि तुम अपने ही जैसे एक मनुष्य के आज्ञाकारी हुए तो निश्चय ही तुम घाटे में पड़ गए

أَيَعِدُكُمْ أَنَّكُمْ إِذَا مِتُّمْ وَكُنْتُمْ تُرَابًا وَعِظَامًا أَنَّكُمْ مُخْرَجُونَ (35)

क्या यह तुमसे वादा करता है कि जब तुम मरकर मिट्टी और हड़्डियाँ होकर रह जाओगे तो तुम निकाले जाओगे?

۞ هَيْهَاتَ هَيْهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ (36)

दूर की बात है, बहुत दूर की, जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है!

إِنْ هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا الدُّنْيَا نَمُوتُ وَنَحْيَا وَمَا نَحْنُ بِمَبْعُوثِينَ (37)

वह तो बस हमारा सांसारिक जीवन ही है। (यहीं) हम मरते और जीते है। हम कोई दोबारा उठाए जानेवाले नहीं है

إِنْ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ افْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا وَمَا نَحْنُ لَهُ بِمُؤْمِنِينَ (38)

वह तो बस एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अल्लाह पर झूठ घड़ा है। हम उसे कदापि माननेवाले नहीं।"

قَالَ رَبِّ انْصُرْنِي بِمَا كَذَّبُونِ (39)

उसने कहा, "ऐ मेरे रब! उन्होंने जो मुझे झुठलाया, उसपर तू मेरी सहायता कर।"

قَالَ عَمَّا قَلِيلٍ لَيُصْبِحُنَّ نَادِمِينَ (40)

कहा, "शीघ्र ही वे पछताकर रहेंगे।"

فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ بِالْحَقِّ فَجَعَلْنَاهُمْ غُثَاءً ۚ فَبُعْدًا لِلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ (41)

फिर घटित होनेवाली बात के अनुसार उन्हें एक प्रचंड आवाज़ ने आ लिया और हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बनाकर रख दिया। अतः फिटकार है, ऐसे अत्याचारी लोगों पर!

ثُمَّ أَنْشَأْنَا مِنْ بَعْدِهِمْ قُرُونًا آخَرِينَ (42)

फिर हमने उनके पश्चात दूसरी नस्लों को उठाया

مَا تَسْبِقُ مِنْ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُونَ (43)

कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है

ثُمَّ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا تَتْرَىٰ ۖ كُلَّ مَا جَاءَ أُمَّةً رَسُولُهَا كَذَّبُوهُ ۚ فَأَتْبَعْنَا بَعْضَهُمْ بَعْضًا وَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ ۚ فَبُعْدًا لِقَوْمٍ لَا يُؤْمِنُونَ (44)

फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ

ثُمَّ أَرْسَلْنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَارُونَ بِآيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُبِينٍ (45)

फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा।

إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَاسْتَكْبَرُوا وَكَانُوا قَوْمًا عَالِينَ (46)

किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग

فَقَالُوا أَنُؤْمِنُ لِبَشَرَيْنِ مِثْلِنَا وَقَوْمُهُمَا لَنَا عَابِدُونَ (47)

तो व कहने लगे, "क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?"

فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُوا مِنَ الْمُهْلَكِينَ (48)

अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ (49)

और हमने मूसा को किताब प्रदान की, ताकि वे लोग मार्ग पा सकें

وَجَعَلْنَا ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ آيَةً وَآوَيْنَاهُمَا إِلَىٰ رَبْوَةٍ ذَاتِ قَرَارٍ وَمَعِينٍ (50)

और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतबाली ऊँची जगह शरण दी,

يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا ۖ إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ (51)

"ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़े खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ

وَإِنَّ هَٰذِهِ أُمَّتُكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَأَنَا رَبُّكُمْ فَاتَّقُونِ (52)

और निश्चय ही यह तुम्हारा समुदाय, एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।"

فَتَقَطَّعُوا أَمْرَهُمْ بَيْنَهُمْ زُبُرًا ۖ كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ (53)

किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर खुश है, जो कुछ उसके पास है

فَذَرْهُمْ فِي غَمْرَتِهِمْ حَتَّىٰ حِينٍ (54)

अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो

أَيَحْسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُمْ بِهِ مِنْ مَالٍ وَبَنِينَ (55)

क्या वे समझते है कि हम जो उनकी धन और सन्तान से सहायता किए जा रहे है,

نُسَارِعُ لَهُمْ فِي الْخَيْرَاتِ ۚ بَلْ لَا يَشْعُرُونَ (56)

तो यह उनके भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे है?

إِنَّ الَّذِينَ هُمْ مِنْ خَشْيَةِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ (57)

नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं;

وَالَّذِينَ هُمْ بِآيَاتِ رَبِّهِمْ يُؤْمِنُونَ (58)

और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते है;

وَالَّذِينَ هُمْ بِرَبِّهِمْ لَا يُشْرِكُونَ (59)

और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते;

وَالَّذِينَ يُؤْتُونَ مَا آتَوْا وَقُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ أَنَّهُمْ إِلَىٰ رَبِّهِمْ رَاجِعُونَ (60)

और जो लोग देते है, जो कुछ देते है और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते है, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है;

أُولَٰئِكَ يُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَهُمْ لَهَا سَابِقُونَ (61)

यही वे लोग है, जो भलाइयों में जल्दी करते है और यही उनके लिए अग्रसर रहनेवाले है।

وَلَا نُكَلِّفُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ۖ وَلَدَيْنَا كِتَابٌ يَنْطِقُ بِالْحَقِّ ۚ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ (62)

हम किसी व्यक्ति पर उसकी समाई (क्षमता) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालते और हमारे पास एक किताब है, जो ठीक-ठीक बोलती है, और उनपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा

بَلْ قُلُوبُهُمْ فِي غَمْرَةٍ مِنْ هَٰذَا وَلَهُمْ أَعْمَالٌ مِنْ دُونِ ذَٰلِكَ هُمْ لَهَا عَامِلُونَ (63)

बल्कि उनके दिल इसकी (सत्य धर्म की) ओर से हटकर (वसवसों और गफ़लतों आदि के) भँवर में पडे हुए है और उससे (ईमानवालों की नीति से) हटकर उनके कुछ और ही काम है। वे उन्हीं को करते रहेंगे;

حَتَّىٰ إِذَا أَخَذْنَا مُتْرَفِيهِمْ بِالْعَذَابِ إِذَا هُمْ يَجْأَرُونَ (64)

यहाँ तक कि जब हम उनके खुशहाल लोगों को यातना में पकड़ेगे तो क्या देखते है कि वे विलाप और फ़रियाद कर रहे है

لَا تَجْأَرُوا الْيَوْمَ ۖ إِنَّكُمْ مِنَّا لَا تُنْصَرُونَ (65)

(कहा जाएगा,) "आज चिल्लाओ मत, तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता मिलनेवाली नहीं

قَدْ كَانَتْ آيَاتِي تُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فَكُنْتُمْ عَلَىٰ أَعْقَابِكُمْ تَنْكِصُونَ (66)

तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाते थे।

مُسْتَكْبِرِينَ بِهِ سَامِرًا تَهْجُرُونَ (67)

हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे

أَفَلَمْ يَدَّبَّرُوا الْقَوْلَ أَمْ جَاءَهُمْ مَا لَمْ يَأْتِ آبَاءَهُمُ الْأَوَّلِينَ (68)

क्या उन्होंने इस वाणी पर विचार नहीं किया या उनके पास वह चीज़ आ गई जो उनके पहले बाप-दादा के पास न आई थी?

أَمْ لَمْ يَعْرِفُوا رَسُولَهُمْ فَهُمْ لَهُ مُنْكِرُونَ (69)

या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं, इसलिए उसका इनकार कर रहे है?

أَمْ يَقُولُونَ بِهِ جِنَّةٌ ۚ بَلْ جَاءَهُمْ بِالْحَقِّ وَأَكْثَرُهُمْ لِلْحَقِّ كَارِهُونَ (70)

या वे कहते है, "उसे उन्माद हो गया है।" नहीं, बल्कि वह उनके पास सत्य लेकर आया है। किन्तु उनमें अधिकांश को सत्य अप्रिय है

وَلَوِ اتَّبَعَ الْحَقُّ أَهْوَاءَهُمْ لَفَسَدَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ وَمَنْ فِيهِنَّ ۚ بَلْ أَتَيْنَاهُمْ بِذِكْرِهِمْ فَهُمْ عَنْ ذِكْرِهِمْ مُعْرِضُونَ (71)

और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए है। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे है

أَمْ تَسْأَلُهُمْ خَرْجًا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَيْرٌ ۖ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ (72)

या तुम उनसे कुथ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है

وَإِنَّكَ لَتَدْعُوهُمْ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ (73)

और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो

وَإِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ عَنِ الصِّرَاطِ لَنَاكِبُونَ (74)

किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते है

۞ وَلَوْ رَحِمْنَاهُمْ وَكَشَفْنَا مَا بِهِمْ مِنْ ضُرٍّ لَلَجُّوا فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ (75)

यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते

وَلَقَدْ أَخَذْنَاهُمْ بِالْعَذَابِ فَمَا اسْتَكَانُوا لِرَبِّهِمْ وَمَا يَتَضَرَّعُونَ (76)

यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे

حَتَّىٰ إِذَا فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَابًا ذَا عَذَابٍ شَدِيدٍ إِذَا هُمْ فِيهِ مُبْلِسُونَ (77)

यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है

وَهُوَ الَّذِي أَنْشَأَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۚ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ (78)

और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो!

وَهُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ (79)

वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे

وَهُوَ الَّذِي يُحْيِي وَيُمِيتُ وَلَهُ اخْتِلَافُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ (80)

और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?

بَلْ قَالُوا مِثْلَ مَا قَالَ الْأَوَّلُونَ (81)

नहीं, बल्कि वे लोग वहीं कुछ करते है जो उनके पहले के लोग कह चुके है

قَالُوا أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ (82)

उन्होंने कहा, "क्या जब हम मरकर मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे , तो क्या हमें दोबारा जीवित करके उठाया जाएगा?

لَقَدْ وُعِدْنَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا هَٰذَا مِنْ قَبْلُ إِنْ هَٰذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ (83)

यह वादा तो हमसे और इससे पहले हमारे बाप-दादा से होता आ रहा है। कुछ नहीं, यह तो बस अगलों की कहानियाँ है।"

قُلْ لِمَنِ الْأَرْضُ وَمَنْ فِيهَا إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ (84)

कहो, "यह धरती और जो भी इसमें आबाद है, वे किसके है, बताओ यदि तुम जानते हो?"

سَيَقُولُونَ لِلَّهِ ۚ قُلْ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ (85)

वे बोल पड़ेगे, "अल्लाह के!" कहो, "फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?"

قُلْ مَنْ رَبُّ السَّمَاوَاتِ السَّبْعِ وَرَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ (86)

कहो, "सातों आकाशों का मालिक और महान राजासन का स्वामीकौन है?"

سَيَقُولُونَ لِلَّهِ ۚ قُلْ أَفَلَا تَتَّقُونَ (87)

वे कहेंगे, "सब अल्लाह के है।" कहो, "फिर डर क्यों नहीं रखते?"

قُلْ مَنْ بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ يُجِيرُ وَلَا يُجَارُ عَلَيْهِ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ (88)

कहो, "हर चीज़ की बादशाही किसके हाथ में है, वह जो शरण देता है औऱ जिसके मुक़ाबले में कोई शरण नहीं मिल सकती, बताओ यजि तुम जानते हो?"

سَيَقُولُونَ لِلَّهِ ۚ قُلْ فَأَنَّىٰ تُسْحَرُونَ (89)

वे बोल पड़ेगे, "अल्लाह की।" कहो, "फिर कहाँ से तुमपर जादू चल जाता है?"

بَلْ أَتَيْنَاهُمْ بِالْحَقِّ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ (90)

नहीं, बल्कि हम उनके पास सत्य लेकर आए है और निश्चय ही वे झूठे है

مَا اتَّخَذَ اللَّهُ مِنْ وَلَدٍ وَمَا كَانَ مَعَهُ مِنْ إِلَٰهٍ ۚ إِذًا لَذَهَبَ كُلُّ إِلَٰهٍ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ (91)

अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु है। ऐसा होता तो प्रत्येक पूज्य-प्रभु अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक-दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और उच्च है अल्लाह उन बातों से, जो वे बयान करते है;

عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ (92)

जाननेवाला है छुपे और खुले का। सो वह उच्चतर है वह शिर्क से जो वे करते है!

قُلْ رَبِّ إِمَّا تُرِيَنِّي مَا يُوعَدُونَ (93)

कहो, "ऐ मेरे रब! जिस चीज़ का वादा उनसे किया जा रहा है, वह यदि तू मुझे दिखाए

رَبِّ فَلَا تَجْعَلْنِي فِي الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ (94)

तो मेरे रब! मुझे उन अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।"

وَإِنَّا عَلَىٰ أَنْ نُرِيَكَ مَا نَعِدُهُمْ لَقَادِرُونَ (95)

निश्चय ही हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि हम उनसे जो वादा कर रहे है, वह तुम्हें दिखा दें।

ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ السَّيِّئَةَ ۚ نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَصِفُونَ (96)

बुराई को उस ढंग से दूर करो, जो सबसे उत्तम हो। हम भली-भाँति जानते है जो कुछ बातें वे बनाते है

وَقُلْ رَبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنْ هَمَزَاتِ الشَّيَاطِينِ (97)

और कहो, "ऐ मेरे रब! मैं शैतान की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ

وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَنْ يَحْضُرُونِ (98)

और मेरे रब! मैं इससे भी तेरी शरण चाहता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।" -

حَتَّىٰ إِذَا جَاءَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُونِ (99)

यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु आ गई तो वह कहेगा, "ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे। - ताकि जिस (संसार) को मैं छोड़ आया हूँ

لَعَلِّي أَعْمَلُ صَالِحًا فِيمَا تَرَكْتُ ۚ كَلَّا ۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَائِلُهَا ۖ وَمِنْ وَرَائِهِمْ بَرْزَخٌ إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ (100)

उसमें अच्छा कर्म करूँ।" कुछ नहीं, यह तो बस एक (व्यर्थ) बात है जो वह कहेगा और उनके पीछे से लेकर उस दिन तक एक रोक लगी हुई है, जब वे दोबारा उठाए जाएँगे

فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ فَلَا أَنْسَابَ بَيْنَهُمْ يَوْمَئِذٍ وَلَا يَتَسَاءَلُونَ (101)

फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी तो उस दिन उनके बीच रिश्ते-नाते शेष न रहेंगे, और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे

فَمَنْ ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ (102)

फिर जिनके पलड़े भारी हुए तॊ वही हैं जो सफल।

وَمَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ فَأُولَٰئِكَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ فِي جَهَنَّمَ خَالِدُونَ (103)

रहे वे लोग जिनके पलड़े हल्के हुए, तो वही है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। वे सदैव जहन्नम में रहेंगे

تَلْفَحُ وُجُوهَهُمُ النَّارُ وَهُمْ فِيهَا كَالِحُونَ (104)

आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और उसमें उनके मुँह विकृत हो रहे होंगे

أَلَمْ تَكُنْ آيَاتِي تُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فَكُنْتُمْ بِهَا تُكَذِّبُونَ (105)

(कहा जाएगा,) "क्या तुम्हें मेरी आयातें सुनाई नहीं जाती थी, तो तुम उन्हें झुठलाते थे?"

قَالُوا رَبَّنَا غَلَبَتْ عَلَيْنَا شِقْوَتُنَا وَكُنَّا قَوْمًا ضَالِّينَ (106)

वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हुआ और हम भटके हुए लोग थे

رَبَّنَا أَخْرِجْنَا مِنْهَا فَإِنْ عُدْنَا فَإِنَّا ظَالِمُونَ (107)

हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे! फिर हम दोबारा ऐसा करें तो निश्चय ही हम अत्याचारी होंगे।"

قَالَ اخْسَئُوا فِيهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ (108)

वह कहेगा, "फिटकारे हुए तिरस्कृत, इसी में पड़े रहो और मुझसे बात न करो

إِنَّهُ كَانَ فَرِيقٌ مِنْ عِبَادِي يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَأَنْتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ (109)

मेरे बन्दों में कुछ लोग थे, जो कहते थे, हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू सबसे अच्छा दया करनेवाला है

فَاتَّخَذْتُمُوهُمْ سِخْرِيًّا حَتَّىٰ أَنْسَوْكُمْ ذِكْرِي وَكُنْتُمْ مِنْهُمْ تَضْحَكُونَ (110)

तो तुमने उनका उपहास किया, यहाँ तक कि उनके कारण तुम मेरी याद को भुला बैठे और तुम उनपर हँसते रहे

إِنِّي جَزَيْتُهُمُ الْيَوْمَ بِمَا صَبَرُوا أَنَّهُمْ هُمُ الْفَائِزُونَ (111)

आज मैंने उनके धैर्य का यह बदला प्रदान किया कि वही है जो सफलता को प्राप्त हुए।"

قَالَ كَمْ لَبِثْتُمْ فِي الْأَرْضِ عَدَدَ سِنِينَ (112)

वह कहेगाः “तुम धरती में कितने वर्ष रहे”?

قَالُوا لَبِثْنَا يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ فَاسْأَلِ الْعَادِّينَ (113)

वॆ कहेंगेः , "एक दिन या एक दिन का कुछ भाग। गणना करनेवालों से पूछ लीजिए।?"

قَالَ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا ۖ لَوْ أَنَّكُمْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ (114)

वह कहेगा, "तुम ठहरे थोड़े ही, क्या अच्छा होता तुम जानते होते!

أَفَحَسِبْتُمْ أَنَّمَا خَلَقْنَاكُمْ عَبَثًا وَأَنَّكُمْ إِلَيْنَا لَا تُرْجَعُونَ (115)

तो क्या तुमने यह समझा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और यह कि तुम्हें हमारी और लौटना नहीं है?"

فَتَعَالَى اللَّهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ ۖ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْكَرِيمِ (116)

तो सर्वोच्च है अल्लाह, सच्चा सम्राट! उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, स्वामी है महिमाशाली सिंहासन का

وَمَنْ يَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ لَا بُرْهَانَ لَهُ بِهِ فَإِنَّمَا حِسَابُهُ عِنْدَ رَبِّهِ ۚ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الْكَافِرُونَ (117)

और जो कोई अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को पुकारे, जिसके लिए उसके पास कोई प्रमाम नहीं, तो बस उसका हिसाब उसके रब के पास है। निश्चय ही इनकार करनेवाले कभी सफल नहीं होगे

وَقُلْ رَبِّ اغْفِرْ وَارْحَمْ وَأَنْتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ (118)

और कहो, "मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और दया कर। तू तो सबसे अच्छा दया करनेवाला है।"