أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ (1)

क्या तुमने उसे देखा जो दीन को झुठलाता है?

فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ (2)

वही तो है जो अनाथ को धक्के देता है,

وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ (3)

और मुहताज के खिलाने पर नहीं उकसाता

فَوَيْلٌ لِلْمُصَلِّينَ (4)

अतः तबाही है उन नमाज़ियों के लिए,

الَّذِينَ هُمْ عَنْ صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ (5)

जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं,

الَّذِينَ هُمْ يُرَاءُونَ (6)

जो दिखावे के लिए कार्य करते हैं,

وَيَمْنَعُونَ الْمَاعُونَ (7)

और साधारण बरतने की चीज़ भी किसी को नहीं देते