أَلْهَاكُمُ التَّكَاثُرُ (1)

तुम्हें एक-दूसरे के मुक़ाबले में बहुतायत के प्रदर्शन और घमंड ने ग़फ़़लत में डाल रखा है,

حَتَّىٰ زُرْتُمُ الْمَقَابِرَ (2)

यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तानों में पहुँच गए

كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ (3)

कुछ नहीं, तुम शीघ्र ही जान लोगे

ثُمَّ كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ (4)

फिर, कुछ नहीं, तुम्हें शीघ्र ही मालूम हो जाएगा -

كَلَّا لَوْ تَعْلَمُونَ عِلْمَ الْيَقِينِ (5)

कुछ नहीं, अगर तुम विश्वसनीय ज्ञान के रूप में जान लो! (तो तुम धन-दौलत के पुजारी न बनो) -

لَتَرَوُنَّ الْجَحِيمَ (6)

अवश्य ही तुम भड़कती आग से दो-चार होगे

ثُمَّ لَتَرَوُنَّهَا عَيْنَ الْيَقِينِ (7)

फिर सुनो, उसे अवश्य देखोगे इस दशा में कि वह यथावत विश्वास होगा

ثُمَّ لَتُسْأَلُنَّ يَوْمَئِذٍ عَنِ النَّعِيمِ (8)

फिर निश्चय ही उस दिन तुमसे नेमतों के बारे में पूछा जाएगा